tarot.ideazunlimited.net.Five of pentacles

फाईव ऑफ पेंटाकल्स

For English please Click here
कृपया एमेजोन से खरिदिए
कृपया फ्लिपकार्ट से खरिदिए
हमसे डायरेक्ट खरिदिए +91 9723106181


अपराईट भविष्य कथन का महत्व



अभाव, खराब स्वास्थ्य, निराशा, अकेलापन, वित्तीय नुकसान, गरीबी, अभाव मानसिकता, अलगाव, चिंता।

राजा हरिश्चंद्र और उनकी पत्नी रानी तारामती की कहाँनी बहुत दिलचस्प है। उनके गुण और दोष आपमें हैं। वस्तुओंका अभाव होने के बावजूद भी आप एक बेहतरीन जिंदगी गुजार सकते हैं। यह कला आपमें हैं। आपका खराब स्वास्थ्य होने के बावजूद निराशा, अकेलापन होने के बावजूद भी हसते हुए जीवन बिता रहे हैं। आनेवाले समय में और ज्यादा वित्तीय नुकसान की सम्भावना है। गरीबी आने के बावजूद भी अभाव मानसिकता आपको अलगाव के लिए मजबूर नहीं कर सकती। हा यह मंजर कुछ दिनों के लिए चिंता का विषय जरूर है। याद रखिए जब आपकी प्रार्थना परमपिता सुन रहे हैं तो आप भाग्यशाली है। अगर परमपिता आपकी प्रार्थना नहीं सुन रहे हैं तो इसका मतलब यह है कि उसे विश्वास है कि इस संकट की घडी से उभरनेमें तुम स्वयं सक्षम हो।

रिवर्स भविष्य कथन



रोजगार, साहस, पुनरुद्धार, आर्थिक नुकसान से उबरना, आध्यात्मिक गरीबी।

आपको रोजगार पाने के लिए साहस करने की जरूरत है।आपका पुनरुद्धार निश्चित है। आर्थिक नुकसान से उबरना आपके भाग्य में लिखा है।किंतु आध्यात्मिक गरीबी छोड दीजिए। गरीबी का उदात्तीकरण भी छोड दीजिए। आपके भाग्य को पलटने में अब देरी नहीं होगी। आप का वैभव आपको पुन: प्राप्त होगा।

युरोपिय टैरो कार्ड अभ्यास वस्तु



कार्ड में दिखाई दे रहा है, बर्फीले मौसम में टहलता एक भिखारी जोड़ा। वे कांच पर रंगे हुए पांच पेंटाकल्स को नहीं देख पा रहे हैं। यह रंगा हुआ कांच एक चर्च की खिड़की हो सकती है। आदमी बैसाखी के सहारे लंगड़ा के चल रहा है। महिला उसकी ओर नहीं देख रही है।

प्राचीन भारतीय टैरो कार्ड अभ्यास वस्तु


गंगा नदी के तट पर एक पंचमुखी हनुमान मंदिर है।

पांच पेंटाकल्स में पीला, गहरा नीला, हल्का नीला, बैंगनी, हरा आभा होता है।

tarot.ideazunlimited.net.vishvakarma tarot.ideazunlimited.net.aura (नारंगी रंग ही मंदिर है, और लाल रंग अंदर पंचमुखी हनुमान की मूर्ति है।)

पेंटाकल्स के आभा रंग कुंडलिनी शक्ति में चक्र का प्रतिनिधित्व करते हैं।

(कुण्डलिनी के सात चक्र होते हैं, इस कार्ड में दो चक्र गुप्त हैं। एक भगवान की मूर्ती और दूसरा मंदिर)

1. क्राउन चक्र (सहस्रार चक्र)

2. तीसरा नेत्र चक्र (आग्या चक्र)

3. गला चक्र (विशुद्ध चक्र)

4. हृदय चक्र (अनाहत चक्र)

5. उदर चक्र (मणिपुर चक्र)

6. नाभि चक्र (स्वाधिष्ठान चक्र)

7. मूल चक्र (मूलाधार चक्र)

इस कार्ड में निर्देशित भिखारी का जोडा साधारण नहीं है।

वह राजा हरिश्चंद्र और उनकी पत्नी रानी तारामती हैं। राजा हरिश्चंद्र ने अपने सपने में ऋषि विश्वामित्र को अपना राज्य उपहार में दिया था। अगले दिन वास्तविक रूप में विश्वामित्र ने राज्य देने के लिए कहा। उसमे अलग से पांच सौ सोने के सिक्कों की गुरूदक्षिणा मांगी।विश्वामित्र, जो अब राजा थे, उन्होंने हरिश्चंद्र को अपने दम पर पांच सौ सोने के सिक्के कमाने को कहा।हरिश्चंद्र ने खुद को श्मशान में बेच दिया। रानी तारामती और उनका पुत्र रोहिताश्व एक धनी व्यक्ति के यहाँ दास दासी का काम करने लगे। एक दिन सर्पदंश से रोहिताश की मृत्यु हो गई।

तारामती शव को श्मशान ले गई । उसे मालूम न था कि स्म्शान में उसके पति काम करते हैं। अंधेरे में हरिश्चंद्र ने शरीर को जलाने की फीस मांगी । तारामतीने अपनी पुरानी साड़ी फाड़ दी। उस समय बादलों में बिजली कडकी और हरिश्चंद्र ने तारामती को अपने पुत्र के शव के साथ देखा..

(विस्तृत कहानी पढ़ें।)

श्री राम के वंश अर्थात् सूर्यवंश में एक राजा हुए थे हरिश्चन्द्र। राजा हरिश्चन्द्र अत्यन्त ही सत्यवाद एवं धर्मात्मा थे। उनकी कीर्ति से देवताओं के राजा इन्द्र को भी ईर्ष्या होती थी। इर्ष्यावश इन्द्र ने महर्षि विश्वामित्र को हरिश्चन्द्र की परीक्षा लेने के लिये उकसाया। इन्द्र की बात मानकर विश्वामित्र ने अपने योगबल के द्वारा राजा हरिश्चन्द्र को एक स्वप्न दिखलाया। उस स्वप्न में राजा हरिश्चन्द्र ने अपना सम्पूर्ण राज्य विश्वामित्र को दान कर दिया। स्वप्न वाली रात्रि के समाप्त होते ही भोर में महर्षि विश्वामित्र ने अयोध्या पहुँच कर राजा हरिश्चन्द्र से कहा कि हे राजन! आपने रात्रि को स्वप्न में अपना राज्य मुझे दान में दे दिया है, अब यह राज्य मेरा है और मैं उसे लेने आया हूँ। राजा हरिश्चन्द्र ने अपने द्वारा स्वप्न में किए गए दान को सहर्ष स्वीकार कर विश्वामित्रजी को अपना सारा राज्य दे दिया।

राजा हरिश्चन्द्र सम्पूर्ण पृथ्वी के सम्राट थे अतः सम्पूर्ण पृथ्वी विश्वामित्र की हो गई। राजा हरिश्चन्द्र ने दान दी गई भूमि में निवास करना उचित नहीं समझा इसलिए अपनी पत्नी शैव्या तथा पुत्र रोहिताश्व के साथ काशी में निवास करने का निश्चय किया क्योंकि पुराणों में वर्णित है कि काशी भगवान् शंकर के त्रिशूल पर बसी है इसलिए वह पृथ्वी में होने पर भी पृथ्वी से अलग है। उनके काशी के लिए प्रस्थान करते समय विश्वामित्रजी ने कहा, ‘जप, तप, दान आदि दक्षिणा दिये बगैर सफल नहीं होते अतः आप अपने दान को सफल करने के लिए मुझे दक्षिणा में एक हजार सोने की मोहरें और दीजिए।’

अपना सब कुछ दान में दे देने के कारण राजा हरिश्चन्द्र के पास कुछ भी धन नहीं बचा था अतः ऋषि से दक्षिणा देने के लिये एक माह का समय माँगकर वे काशी चले आये जहाँ उन्होंने अपनी पत्नी रानी शैव्या को एक ब्राह्मण के हाथ बेच दिया। महारानी शैव्या अब ब्राह्मण के घर में दासी का काम करने लगीं। राजकुमार रोहिताश्व बहुत छोटा बालक था। प्रार्थना करने पर ब्राह्मण ने उसे अपनी माता के साथ रहने की आज्ञा दे दी।

राजा हरिश्चन्द्र ने स्वयं अपने को एक चाण्डाल के हाथ बेच दिया और इस प्रकार ऋषि विश्वामित्र को एक हजार मोहरें दक्षिणा में दीं। चाण्डाल के सेवक बन कर राजा हरिश्चन्द्र श्मशानघाट की चौकीदारी करने लगे। वहाँ जलाये जाने वाले मुर्दों पर कर वसूल करना उनका कार्य था। एक दिन राजकुमार रोहिताश्व ब्राह्माण की पूजा के लिये फूल चुन रहा था कि एक विषैले साँप ने उसे काट लिया जिसके परिणामस्वरूप रोहिताश्व की मृत्यु हो गई। उसकी माता महारानी शैव्या को न तो कोई धीरज बँधाने वाला ही था और न ही उनके पुत्र की देह श्मशान पहुँचाने वाला। वे रोती-बिलखती पुत्र की देह को हाथों पर उठाये अकेली रात में श्मशान पहुँचीं। वे पुत्र की देह का अग्नि संस्कार करने जा रही थीं कि हरिश्चन्द्र वहाँ आ गये और श्मशान का कर माँगने लगे। रानी ने राजा हरिश्चन्द्र को उनके स्वर से पहिचान लिया और गिड़गिड़ाकर कहने लगीं-‘महाराज ! यह तो आपका ही पुत्र मरा पड़ा है। मेरे पास कर देने को कुछ नहीं है।’

राजा हरिश्चन्द्र बड़े दुःखी हुए; किन्तु वे अपने धर्म पर स्थिर बने रहे। उन्होंने कहा-‘रानी ! मैं यहाँ चाण्डाल का सेवक हूँ । मेरे स्वामी ने मुझे आज्ञा दे रखी है कि बिना कर दिये कोई मुर्दा न जलाने पावे। मैं अपने धर्म को नहीं छोड़ सकता। तुम मुझे कर देकर ही पुत्र की देह जला सकती हो।’

रानी फूट-फूट कर रोने लगी और बोलीं-‘मेरे पास तो यही एक साड़ी है, जिसे मैं पहिने हूँ, आप इसी में आधा ले लें।’ जैसे ही रानी अपनी साड़ी फाड़ने चली, वैसे ही वहाँ भगवान् नारायण, इन्द्र, धर्मराज आदि देवता और महर्षि विश्वामित्र प्रकट हो गये। महर्षि विश्वामित्र ने बताया कि कुमार रोहित मरा नहीं है। यह सब तो ऋषि ने योगमाया से दिखलाया था। राजा हरिश्चन्द्र को खरीदने वाले चाण्डाल के रूप में साक्षात् धर्मराज थे।

कितनी ही विपत्ति आने के बावजूद भी राजा हरिश्चन्द्र सत्य पर अडिग रहे। सत्य साक्षात् नारायण का स्वरूप है। अतः सत्य के प्रभाव से राजा हरिश्चन्द्र शैव्या के साथ परमधाम को चले गये। महर्षि विश्वामित्र ने राजकुमार रोहिताश्व को अयोध्या का राजा बना दिया।





प्राचीन भारतीय टैरो कार्ड

द फूल

द मैजिशियन

द हाई प्रिस्टेस

द एम्प्रेस

द एम्परर

द हेरोफंट

द लवर्स

द चैरीओट

द स्ट्रेंग्थ

द हरमिट

द व्हील ऑफ फॉर्चून

जस्टिस

द हैंग्ड मैन

द डेथ

टेम्परंस

द डेविल

द टावर

द स्टार

द मून

द सन

जजमेंट

द वर्ल्ड

एस ऑफ कप्स

टू ऑफ कप्स

थ्री ऑफ कप्स

फोर ऑफ कप्स

फाइव ऑफ कप्स

सिक्स ऑफ कप्स

सेवन ऑफ कप्स

एट ऑफ कप्स

नाइन ऑफ कप्स

टेन ऑफ कप्स

पेज ऑफ कप्स

नाईट ऑफ कप्स

क्वीन ऑफ कप्स

किंग ऑफ कप्स

एस ओफ स्वोर्ड्स

टू ओफ स्वोर्ड्स

थ्री ओफ स्वोर्ड्स

फोर ओफ स्वोर्ड्स

फाईव ओफ स्वोर्ड्स

सिक्स ओफ स्वोर्ड्स

सेवन ओफ स्वोर्ड्स

एट ओफ स्वोर्ड्स

नाइन ओफ स्वोर्ड्स

टेन ओफ स्वोर्ड्स

पेज ओफ स्वोर्ड्स

नाईट ओफ स्वोर्ड्स

क्वीन ओफ स्वोर्ड्स

किंग ओफ स्वोर्ड्स

एस ओफ वांड

टू ओफ वांड

थ्री ओफ वांड

फोर ओफ वांड

फाइव ओफ वांड

सिक्स ओफ वांड

सेवन ओफ वांड

एट ओफ वांड

नाइन ओफ वांड

टेन ओफ वांड

पेज ओफ वांड

नाईट ओफ वांड

क्वीन ओफ वांड

किंग ओफ वांड

एस ऑफ पेंटाकल्स

टू ऑफ पेंटाकल्स

थ्री ऑफ पेंटाकल्स

फोर ऑफ पेंटाकल्स

फाईव ऑफ पेंटाकल्स

सिक्स ऑफ पेंटाकल्स

सेवन ऑफ पेंटाकल्स

एट ऑफ पेंटाकल्स

नाइन ऑफ पेंटाकल्स

टेन ऑफ पेंटाकल्स

पेज ऑफ पेंटाकल्स

नाईट ऑफ पेंटाकल्स

क्वीन ऑफ पेंटाकल्स

किंग ऑफ पेंटाकल्स